शायद आप सभी को पता हो 23 April 1930 पेशावर कांड और उसके नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के बारे में। जिस तरह जलियावाला बाग में अंग्रेजों ने वहां इकट्ठे देशवासियों पर गोलियां चलवाई थी, उसी तरह का एक और घटना इतिहास में दर्ज है "पेशावर कांड"।
पेशावर कांड में भी अंग्रेजों ने मासूम जनता पर गोली चलाने का हुक्म तो दिया पर उस सेना की टुकड़ी का संचालन एक उत्तराखंडी अफसर कर रहा था, नाम था हवलदार मेजर चंद्र सिंह भंडारी (चंद्र सिंह गढ़वाली के नाम से मशहूर)।
चंद्र सिंह गढ़वाली ने आदेश मानने से साफ इंकार कर दिया यह कह कर की - "गढ़वाली गोली नही चलाएंगे" ये सभी दुश्मन नही हमारे ही देश के अपने भाई बहन हैं। इन पर गोली नही चलाई जा सकती। और उनका साथ दिया उनके साथियों ने। यहीं से "गढ़वाली" उपनाम से प्रसिद्ध हुए।
इसके लिए उनका कोर्ट मार्शल कर सजा दी गई। और उनको और उनके साथी सैनिकों को जेल में डाल दिया गया। गढ़वाली सैनिकों की पैरवी मुकंदी लाल ने की और मौत की सजा को कैद में बदलवाया।
23 अप्रैल 1994 को भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया।
नाम - चंद्र सिंह गढ़वाली
असली नाम - श्री चंद्र सिंह भंडारी
पिता का नाम - श्री जलौथ सिंह भंडारी
जन्म स्थान - मैसों, पट्टी चौथान, तहसील थलीसैण, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
उपनाम - पेशावर के नायक, गढ़वाली
जीवन - 25 दिसंबर 1891 से 1 अक्टूबर 1979
25 दिसंबर 1992 को उत्तराखंड क्रांति दल ने उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैण में उनकी मूर्ति की स्थापना की और गैरसैण का दूसरा नाम चंद्रनगर भी रखा गया और यही से उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने के आंदोलन की शुरुवात की।
23 अप्रैल 1994 को भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया।
असली नाम - श्री चंद्र सिंह भंडारी
पिता का नाम - श्री जलौथ सिंह भंडारी
जन्म स्थान - मैसों, पट्टी चौथान, तहसील थलीसैण, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
उपनाम - पेशावर के नायक, गढ़वाली
जीवन - 25 दिसंबर 1891 से 1 अक्टूबर 1979
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